श्री रामचरित मानस के मंत्र दोहा चोपाई आदि को कैसे सिद्ध ' करें?


  • नियम- मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।
    अष्टांग हवन सामग्री
    1. चन्दन का बुरादा, 2. तिल, 3. शुद्ध घी, 4. चीनी, 5. अगर, 6. तगर, 7. कपूर, 8. शुद्ध केसर, 9. नागरमोथा, 10. पञ्चमेवा, 11. जौ और 12. चावल।

  • जानने की बातें-
    जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) 108 बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में 'स्वाहा' बोल देना चाहिये।

  • प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से 108 आहुति के लिये एक सेर (80 तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध 4 आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।

  • हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता 108 की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।

  • मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।

  • सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार 108 आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।

  • एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम 108 बार प्रात:काल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।

  • कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।

  • 1. विपत्ति-नाश के लिये
    'राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।

  • 2. संकट-नाश के लिये
    'जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
    जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
    दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।

  • 3. कठिन क्लेश नाश के लिये
    'हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥

  • 4. विघ्न शांति के लिये
    'सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥

  • 5. खेद नाश के लिये
    'जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥

  • 6. चिन्ता की समाप्ति के लिये
    'जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥

  • 7. विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
    'दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

  • 8. मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
    'हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।

  • 9. विष नाश के लिये
    'नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

  • 10. अकाल मृत्यु निवारण के लिये
    'नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
    लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

  • 11. सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
    'प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
    जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥

  • 12. नजर झाड़ने के लिये
    'स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।

  • 13. खोयी हुई वस्तु पुन: प्राप्त करने के लिए
    'गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।

  • 14. जीविका प्राप्ति केलिये
    'बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।

  • 15. दरिद्रता मिटाने के लिये
    'अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।

  • 16. लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
    'जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
    तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।

  • 17. पुत्र प्राप्ति के लिये
    'प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
    सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।Ó

  • 18. सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
    'जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।

  • 19. ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
    'साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।

  • 20. सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
    सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।

  • 21. मनोरथ-सिद्धि के लिये
    'भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
    तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।

  • 22. कुशल-क्षेम के लिये
    'भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।

  • 23. मुकदमा जीतने के लिये
    'पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।

  • 24. शत्रु के सामने जाने के लिये
    'कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥

  • 25. शत्रु को मित्र बनाने के लिये
    'गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।

  • 26. शत्रुतानाश के लिये
    'बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥

  • 27. वार्तालाप में सफ़लता के लिये
    'तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥

  • 28. विवाह के लिये
    'तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
    मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥

  • 29. यात्रा सफ़ल होने के लिये
    'प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

  • 30. परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
    'जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
    मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

  • 31. आकर्षण के लिये
    'जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥

  • 32. स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
    'सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
    लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।

  • 33. निन्दा की निवृत्ति के लिये
    'राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।

  • 34. विद्या प्राप्ति के लिये
    गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥

  • 35. उत्सव होने के लिये
    'सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
    तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।

  • 36. यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
    'जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
    पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

  • 37. प्रेम बढाने के लिये
    सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

  • 38. कातर की रक्षा के लिये
    'मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।

  • 39. भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
    रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग । 
    सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥

  • 40. विचार शुद्ध करने के लिये
    'ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।

  • 41. संशय-निवृत्ति के लिये
    'राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।

  • 42. ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
    ' अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।

  • 43. विरक्ति के लिये
    'भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
    सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।

  • 44. ज्ञान-प्राप्ति के लिये
    'छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।

  • 45. भक्ति की प्राप्ति के लिये
    'भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
    सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।

  • 46. श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
    'सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।

  • 47. मोक्ष-प्राप्ति के लिये
    'सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।

  • 48. श्री सीताराम के दर्शन के लिये
    'नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम । 
    लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥

  • 49. श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
    'जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।

  • 50. श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
    'केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
    देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।

  • 51. सहज स्वरुप दर्शन के लिये
    'भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।। 

    • (कल्याण से साभार उद्धृत)