मौनतीर्थ में विराजीत है तुलसीदास जी द्वारा पूजित भगवान् शालिग्राम
कार्त्तिक मास में शालिग्राम की पूजा का विशेष महत्त्व माना गया है। विशेष कर कार्तिक माह के आखिरी पांच दिनों, जो कि भीष्म पंचक कहलाता है, उसमें की गई पूजा का फल पूरे साल की पूजा के बराबर है। श्री मौनतीर्थ पीठ में यह फल कई गुना हो जाता है, क्योंकि पावन श्री मौनतीर्थ पीठ में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा पूजित शालिगराम की मूर्ति स्थापित है। श्री मौनतीर्थ पीठ के पीठाधीश्वर संतश्री सुमनभाई जी को यह प्रतिमा तुलसीदासजी के वंशजों ने भेंट की थी। जिसे पूज्य भाईजी ने विधि पूर्वक पूजन-अभिषेक के साथ स्थापित की है। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी पर श्री मौनतीर्थ पीठ में तुलसी-शालिग्राम विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन श्री मौनतीर्थ पीठ में पूज्य भाईजी द्वारा गरीब कन्याओं का विवाह नि:शुल्क सम्पन्न करवाया जाता है। दीपावली के जगमगाहट के बीच पूरा मौनतीर्थ पीठ परिवार वधु-पक्ष की तरफ से बारातियों का आदर सत्कार कर उचित वस्त्र, उपहार आदि भेंट करता है।
पूज्य भाईजी कार्तिक मास की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि पुराणों के अनुसार इस मास को चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। स्वयं नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के माहात्म्य के संदर्भ में बताया है। पूज्य भाईजी आगे बताते हैं कि श्री शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप ,दु:ख और रोग दूर हो जाते हैं। तुलसी शालिग्राम विवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है। त्रिदेव में से दो भगवान शिव और विष्णु दोनों ने ही जगत के कल्याण के लिए पार्थिव रूप धारण किया। जिस प्रकार नर्मदा नदी में निकलने वाले पत्थर नर्मदेश्वर या बाण लिंग साक्षात् शिव स्वरुप माने जाते हैं और स्वयंभू होने के कारण उनकी किसी प्रकार प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती। ठीक उसी प्रकार शालिग्राम भी नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को कहते हैं। स्वयंभू होने के कारण इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं।
शालिग्राम भिन्न भिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं कुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है तथा पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान होती हैं। दुर्लभ रूप से कभी कभी पीताभ युक्त शालिग्राम भी प्राप्त होते हैं। भगवान्् शिव ने भी स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय में उल्लेख है कि जहां भगवान् शालिग्राम की पूजा होती है वहाँ भगवान विष्णु के साथ भगवती लक्ष्मी भी निवास करती है। पुराणों में यह भी लिखा है कि शालिग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल पा लेता है। जो निरंतर शालिग्राम शिला का जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है। मृत्युकाल में इनके चरणामृत का जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है। जिस घर में शालिग्राम का नित्य पूजन होता है उसमें वास्तु दोष और बाधाएं स्वत: समाप्त हो जाती है। भगवान् शालिग्राम का पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। शालिग्राम जी को स्नान कराकर चन्दन लगाकर तुलसी दल अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना। यह उपाय मन, धन व तन की सारी कमजोरियों व दोषों को दूर करने वाला माना गया है। पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान् शालिग्राम हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। इनके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है। शालिग्राम ना तो किसी गृहस्थ या सांसारिक व्यक्ति से दान में लें और ना ही किसी गृहस्थ या सांसारिक व्यक्ति को दान में देना चाहिए। इसे आप अपनी मेहनत और सत्य की कमाई से ही खरीदें तो बेहतर होगा। कोई सिद्ध पुरुष या संत आपको दे तो अवश्य लें।
कार्तिक मास में करें भगवान् शालिग्राम का अभिषेक पूजन व दर्शन